जिन्दगी
अगर जिन्दगी में कठिनाईयाँ न होती
संघर्ष न होते परेशानियाँ न होती
तो वो भी कोई जिन्दगी होती?
मुहब्बत न होती रुसवाईयाँ न होती
धूप भी न होती परछाईयाँ न होती
तो वो भी कोई जिन्दगी होती?
निकाह न होते शहनाईयाँ न होती,
ब्याह न होते विदाईयाँ न होती,
दहेज भी न होता बेटियाँ न रोती,
कहीं कोख में न मरती बेटियाँ,
अगर ये रुपयों की गड्डियाँ न होती
कैसा होता समाज अगर बेटियाँ न होती?
कभी सोच कर देखो…………………..
अरे भाई सोचने के लिए आप ही न होते
अगर बेटियाँ न होती।
बेटियाँ भी करती अपने सपनों को सच
अगर उन पर ये बंदिशें ये बेड़ियाँ न होती।
सोचो कभी की अगर बेटियाँ न होती
जेवर न होते गहने न होते।
मेंहदी न होती साड़ियाँ न होती।
सूनी होती हर भाई की कलाई,
किसी के हाँथ में राखियाँ न होती।
अगर हम सब के घरों में बेटियाँ न होती।
माँ की डाँट से भाई को कौन बचाता।
कभी जो टूटे कोई सामान तो उसको कौन छिपाता।
सब दर्द सह कर भी कौन चुप रह जाता।
और
कुछ न कहने पर भी कौन हमारी तक़लीफ समझ पाता।
भाई बहन की वो हँसी ठिठोलियाँ न होती
अगर बेटियाँ न होती
और तो और
किसी भी आँगन में किलकारियाँ न होती
अगर बेटियाँ न होती।
न होती माँ न मौसी न नानी. दादी
बुआ न होती चाची भाभी कोई भी न होता
हर तरफ पसरा होता सन्नाटा…….
सिर्फ होती बर्बादी अगर बेटियाँ न होती।
अगर बेटियाँ न होती अगर बेटियाँ न होती।
Sahinul Islam