भ्रम्यमान थिएटर- गोपाल जालान

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भ्रम्यमान थिएटर

गोपाल जालान

वैश्विक महामारी कोरोना के कारण उत्पन्न भयावह स्थिति की वजह पिछले दो सालों से भ्रम्यमान थिएटर की गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ गई थी। जब पूरी दुनिया कोविड-19 के आतंक से पीड़ित थी वैसे समय में भ्रम्यमान थिएटर के पर्दे का न उठाना स्वभाविक ही था, कारण संस्कृति कभी भी धारा के विपरीत नहीं जाती। एक स्वस्थ सांस्कृतिक माहौल के लिए सबसे ज्यादा जरूरी लोगों के मन का शांत होना है। कोविड के डर के मारे लोगों के मन में कैसी-कैसी उथल-पुथल चल रही थी, यह सोचकर आज भी दिल घबराने लगता है। कभी-कभी तो ऐसे भी भाव आए कि कोरोना की चपेट में आकर पूरी दुनिया ही खत्म न हो जाए। ऐसी शंकाओं के दायरे से बाहर निकलने में भी लोगों को कम समय नहीं लगा था। लिहाजा यह स्वभाविक ही था कि ऐसी विषम घड़ी में भ्राम्यमान थिएटर को भी अपने कदम रोक देने पड़े। जब लोग अपने-अपने घरों में कैद हो। दो वक्त के खाने का संकट सामने खड़ा हो। शहर-सड़कें सूनी हो, वैसे माहौल में साहित्य-संस्कृति की चर्चा हो, ऐसा सोचना भी नासमझी है। लोगों को इस तनाव भरे माहौल से बाहर निकालने के लिए कई भ्रम्यमान थिएटर प्रबंधन ने नाटक मंचित करने की बात सोची भी तो कोविड को लेकर सरकार द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देश (एसओपी) आड़े आ गए। सरकारी एसओपी के अनुसार नाटक का मंचन तो दूर रिर्हसल करने पर भी पाबंदी थी। ऐसे संकट की घड़ी में आर्थिक समस्या को दरकिनार कर पूरे आत्मविश्वास के साथ नाटक के मंचित करने का साहस जुटाना यह साबित करता है कि भ्रम्यमान थिएटर को लेकर असमवासी कितने आशावादी हैं। दो साल तक गतिविधियों के स्तब्ध रहने के बाद एक बार फिर भ्रम्यमान थिएटर अपने-अपने मंच को जीवांत करने की कोशिशों में जुट गए हैं। सच में यह एक सकारात्म पहलु हैऔर इस हिम्मत की जितनी भी दाद दी जाए कम है। भ्रम्यमान थिएटर का यह संकल्प इस बात को दर्शाता है कि लाख चुनौतियों के बावजूद “शो मॉस्ट गो ऑन’। चाहे कितनी भी भयावह परिस्थिति क्यों न हो मंच के पर्दे को हमेशा-हमेशा के लिए नहीं गिरा सकती। पर्दे का उठना-गिरना थिएटर के दिल की धड़कन है और यह दिल हमेशा धड़कता रहेगा। असमिया संस्कृति के लिए भ्रम्यमान थिएटर आत्मा स्वरूप है और असमिया संस्कृति से उसकी आत्मा को अलग नहीं किया जा सकता।
कोविड महामारी के कारण दो साल तक बंद पड़ा भ्रम्यमान थिएटर उद्योग फिर अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा, इस बात को लेकर बहुतों के मन में शंकाएं थीं। थिएटर से संबंधित बहुत सी ऐसी सामग्री है, जिनका लगातार दो साल तक उपयोग न किया जाए तो वे खराब हो जाती है। इसके अलावा एक थिएटर के नए प्रेक्षागृह के लिए यदि विशेष सामग्री खरीदनी पड़ जाए तो उसके लिए कितने रुपए की जरूरत पड़ सकती है, एक आम व्यक्ति यह सोच भी नहीं सकता। इतनी बड़ी धनराशि जुटा पाना भी कोई आसान काम नहीं है। मौसम की मार से भी थिएटर की बहुत सी सामग्री नष्ट हो जाती है। राज्य के बड़े-बड़े थिएटर ग्रुप तो जैसे भी हो, इतनी बड़ी धनराशि जुटा भी लें, मगर जैसे-तैसे अपनी गाड़ी खिंचने वाले थिएटर ग्रुप के लिए यह चुनौती भी किसी कोरोना से कम नहीं। ऐसे भारीभरकम खर्च से निपटने के लिए किसी बैंक अथवा अन्य वित्तीय संस्थान से कर्ज ले भी लिया जाए तो बाद में कर्ज का भुगतान भी कम बड़ी समस्या नहीं है। कुल मिलाकर कोरोना महामारी के कारण राज्य के भ्रम्यमान थिएटर उद्योग को जो नुकसान उठाना पड़ा है, उसे सहज शब्दों में नहीं बताया जा सकता। कई थिएटर ऐसी समस्या से नहीं निपट पाए बोलकर इस साल नाटक-मंचन के लिए स्वयं को तैयार नहीं कर पाए। भ्रम्यमान थिएटर जगत के लिए यह कोई सुखद स्थिति नहीं है।
भ्रम्यमान थिएटर से जुड़े कलाकार-तकनीशियन, अभिनेता-अभिनेत्रियों को पिछले दो सालों में जिस प्रकार की आर्थिक समस्याओं से गुजरना पड़ा है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बहुतों को अपना कर्म-जीवन ही बदलना पड़ा। कइयों को तो दैनिक मजदूरी करते हुए भी देखा गया। भ्रम्यमान थिएटर नेइतनी गंभीर स्थिति का मुकाबला इससे पहले कभी भी नहीं किया था। कोविड ने हमें सिखाया कि ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए सभी के एकजुट प्रयासों की जरूरत है, क्योंकि हालात चाहे कितने भी बुरे क्यों न हो जाए “शो मॉस्ट गो ऑन’