खो गए अपने से- कृतिका कलिता

खो गए अपने से

ऐ जिंदगी तेरे इस सफर को
निभाते निभाते खो गए अपने से

ख़्वाशें बिखेरे हैं, उम्मीदें थक
गए, किस मोड़ पे आ खड़ी ऐ जिंदगी

आदत की आदत छूट नहीं रही
तन्हाएं की साथ छुटे न छुट रहे

रिश्तों की किताब में धूल चर गई
मुठी से फिसालते फिसालते खुदकी अस्तिवा से मोड़ गए

लूट गए इस दुनियादारी की बाजार के खेल में
इस कदर लूट गए अपने शक से ही हार गए

खामोशियां के शोर ने बेरेहम कर दी
अब खुदा ऐ जिंदगी से प्यार करना सिखा दे

: कृतिका कलिता: