बटद्रवाकांड : एक गंभीर चुनौती
गोपाल जालान
गुस्साई भीड़ द्वाराबटद्रवा थाने में तोड़फोड़ करने के बाद उसे आग के हवाले कर देने की घटना से एक बार फिर आपराधिक तत्वों के बुलंद हौसले सामने आए हैं। इस घटना ने राज्य की शांति व्यवस्था पर एक बड़ा सा सवालिया निशान लगा दिया है। इसके लिए जनता में भारी आक्रोश भी देखा जा रहा है। असम में पुलिस थाने को आग के हवाले कर देने की यह पहली घटना है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले पुलिस थानों में क्षुब्ध लोगों द्वारा तोड़फोड़ न की गई हो, मगर बटद्रवा की बटद्रवा की घटना इन सबसे अगल और बेहद गंभीर है। संभवत: इसीलिए मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिश्व शर्मा को कहना पड़ा कि यह घटना बताती है, असम का माहौल कितना भयावह और संकटजनक बन चुका है।
घटना के संदर्भ में यह बताया गया कि पुलिस हिरासत के दौरान में सफीकुल इस्लाम नामक एक व्यक्ति की अस्पताल में हुई मौत से गुस्साए ग्रामीणों ने थाने पर हमला किया और बाद में थाने को आग के हवाले कर दिया गया। इस घटना में थाने में रखे सभी कागजात-दस्तावेज, हथियार-वाहन आदि जलकर खाक हो गए। बटद्रवा पुलिस थाना फूंक दिए जाने की घटना के फैलते ही समूचे पुलिस महकमें में अफरा-तफरी मच गई। नगांव जिले के अभिवावक मंत्री पीयूष हजारिका ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस घटना के दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पहली नजर में देखने पर यह अपने किसी आत्मीय व्यक्ति की मौत से उपज गुस्से का नतीजा दिखती है, मगर राज्य पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) भास्कर ज्योति महंत यह दावा कि थाने को जलाने वाले मृतक के शोक संतप्त रिश्तेदार नहींे, बल्कि हिस्ट्रीशीटर बदमाश थे और आपराधिक पृष्ठभूमि के ऐसे लोगों की मंशा थाने में रखे आपराधिक रिकॉर्ड को जलाने की रही होगी। कई सवाल खड़े करती है। पुलिस की प्रारंभिक जांच के आधार पर श्री महंत ने कहा, “यह एक साधारण कार्रवाई की प्रतिक्रिया में की गई घटना नहीं थी, बल्कि इसमें आगे भी बहुत कुछ है।’
राज्य के पुलिस प्रमुख का मीडिया को दिया गया यह बयान कि “”कुछ स्थानीय शरारती तत्वों ने कानून को अपने हाथ में लिया और थाने में आग लगा दी। इनमें महिलाएं, पुरुष, युवा और बुजुर्ग सभी शामिल थे। लेकिन जिस तैयारी के साथ वे आए थे और पुलिस पर उन्होंने जिस क्रूर और संगठित तरीके से हमला किया, उसने पुलिस को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया है।” संकेत है इस बात का कि राज्य में आपराधिक तत्वों की जड़ें कितनी गहरी है।
डीजीपी ने यह भी कहा कि थाने को जलाने की घटना में शामिल लोग खराब चरित्र के थे और उन लोगों के रिश्तेदार थे, जिनका आपराधिक रिकॉर्ड थाने में सबूत के तौर पर था, जो आग में जलकर नष्ट हो गए। इसलिए यह मत सोचिए कि यह एक साधारण क्रिया के बदले की गई प्रतिक्रिया की घटना है। इसमें और भी बहुत कुछ है। विशेष पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह ने तो थाना जलाने की घटना के पीछे जिहादी और आतंकी साजिश होने की संभावना जताई। इस संदर्भ में नगांव के जिला पुलिस अधीक्षक को बरपेटा, बंगाईगांव आदि जिलों में चल रहे इस्लामिक जिहादी संगठनों से जुड़े मामलों में वहां के जिला अधीक्षकों से संपर्क कर यह पता लगाने को कहा गया है कि बटद्रवा थाना जलाने की घटना में शामिल लोगों के संबंध कहीं उन जिहादियों के साथ तो नहीं है। उन्होंने ने भी इस बात को दोहराया कि हमलावर पूरी तैयारी के साथ आए थे और उनका इरादा केस डायरी को नष्ट करने और हथियारों को छीनने का होगा और इन सभी बातों को जांच में शामिल किया जाएगा। इसके अलावा डीआईजी सेंट्रल रेंज सत्यजीत हजारिका ने इस इलाके में ड्रग्स का बड़ा कारोबार होने की बात बताई। यह बताने की जरूरत नहीं है कि पिछले एक साल से असम पुलिस राज्य के मवेशी तस्कर और ड्रग्स माफियाओं के पीछे पड़ी हुई है। एक साल में तस्करों की धड़पकड़ से लेकर एंकाउटर तक सभी धड़ल्ले से जारी है। ऐसे में आपराधिक तत्वों में पुलिस के खिलाफ आक्रोश होना स्वाभाविक है, मगर उनके हौसलों का इस कदर बढ़ जाना कि वह लोग पुलिस थाने को फूंक दें, यह सरकार और पुलिस के लिए एक गंभीर चुनौती है। पुलिस व सरकार को ऐसी वारदातों को गंभीरता और पूरी कठोरता से निपटना चाहिए ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।