देवदास – अधूरी मोहब्बत की कहानी
चिमी बरुआह, मोरिगांव
वो चाँद था, पर अंधेरों में खो गया,
प्यार किया, मगर किस्मत से रो गया।
पारो थी रोशनी, उसकी सांसों की लय,
पर समाज ने खींच दी, जुदाई की रेखा नय।
मदिरा में ढूँढा उसने अपना चैन,
हर घूँट में छलकता रहा उसका बैन।
चंद्रमुखी ने चाहा, मगर किस्मत ने ठुकराया,
प्रेम का सागर भी उसके आँसुओं में समाया।
राजमहल की शोभा, पर दिल वीरान था,
हर मुस्कान के पीछे एक तूफ़ान था।
पारो की झलक में जीया, मर गया वही,
देवदास बन गया दर्द की निशानी सही।
अंतिम साँसों में पारो का नाम जुबां पर था,
उसकी देह मिट्टी में, पर रूह इंतज़ार पर था।
पारो के घोर के सोखोट पोर वो गिरा,
परो देखने आयी — दिल में सन्नाटा भरा।
पर तक़दीर ने दरवाज़ा उसके आगे बंद कर दिया,
बस एक आह रह गई — जो हवाओं में घुल गया।
देवदास सो गया सदा के लिए, जहाँ दर्द भी शर्माया,
एक अधूरी मोहब्बत ने अमर रूप पाया।
