जिन्दगी- Sahinul Islam

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 जिन्दगी
अगर जिन्दगी में कठिनाईयाँ न होती
संघर्ष न    होते    परेशानियाँ न होती
तो   वो   भी    कोई  जिन्दगी होती?
मुहब्बत न होती रुसवाईयाँ न होती
धूप भी  न होती परछाईयाँ न होती
तो   वो  भी  कोई  जिन्दगी  होती?
निकाह न होते शहनाईयाँ न होती,
ब्याह न  होते  विदाईयाँ   न होती,
दहेज भी न होता  बेटियाँ न रोती,
कहीं  कोख  में  न  मरती बेटियाँ,
अगर ये   रुपयों की       गड्डियाँ न होती
कैसा होता समाज अगर बेटियाँ न होती?
कभी सोच कर देखो…………………..
अरे भाई सोचने के लिए आप ही न होते
अगर बेटियाँ न होती।
बेटियाँ भी  करती  अपने सपनों को  सच
अगर उन पर ये बंदिशें ये बेड़ियाँ न होती।
सोचो कभी की  अगर  बेटियाँ   न  होती
जेवर   न  होते  गहने  न   होते।
मेंहदी न होती साड़ियाँ न होती।
सूनी  होती  हर  भाई  की कलाई,
किसी के हाँथ में राखियाँ न होती।
अगर हम सब के घरों में बेटियाँ न होती।
माँ    की    डाँट   से   भाई   को   कौन     बचाता।
कभी जो टूटे कोई सामान तो उसको कौन छिपाता।
सब   दर्द   सह   कर   भी   कौन  चुप  रह जाता।
और
कुछ न कहने पर भी कौन हमारी तक़लीफ समझ पाता।
भाई   बहन  की   वो  हँसी ठिठोलियाँ  न  होती
अगर बेटियाँ न होती
और तो और
किसी भी आँगन में किलकारियाँ न होती
अगर बेटियाँ न होती।
न होती माँ न मौसी न नानी.   दादी
बुआ न होती चाची भाभी कोई भी न होता
हर तरफ पसरा होता सन्नाटा…….
सिर्फ होती बर्बादी  अगर  बेटियाँ  न  होती।
अगर बेटियाँ न होती अगर बेटियाँ न होती।

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