शीर्षक: दास्ताँ-ए-ज़िंदगी – शिखा वर्मा

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आकाश के नीचे एक छत
छत के नीचे एक प्यारा सा घर
घर के चार कमरे
उनमें से एक मेरा

और मेरे कमरे के दीवारों पर तस्वीरें
तस्वीरों में लिपटी यादें
यादों में लिपटा बचपन
बचपन जो डर में बीता
डर जिसमें मासूमियत खो गई
मासूमियत जो रुसवाई में बदली
रुसवाई जो दुनिया से रही
दुनिया जिसमें एक अपना नहीं

अपना बस था एक अकेलापन
अकेलापन जिसकी आदत सी थी
आदत जिसका ख़ौफ सा था
ख़ौफ के कोई छोड़ न दे
छोड़ तनहा कोई चल न पड़े

चलता इक सफ़र ही था
सफ़र जिसमें कई दोस्त रहे
दोस्त जो पल भर में बदले
कुछ जो उम्र भर रहें

उससे बढ़ता डर की जीत
जीत जो इश्क़ का था
इश्क़ में मिली अनगिनत खुशियां

खुशियों में लिपटी पहली मोहब्बत
पहली मोहब्बत का पहला तोहफ़ा
तोहफ़े में मिली उसकी चिट्ठी
चिट्ठी में भरी उसकी खुशबू
खुशबू और उसकी आहट

आहट जो भ्रम में बदली
बदलाव जो धोखे सा लगा
धोखा जो आँखों को हुआ
आँखों में दर्द भरा विश्वास
विश्वास जिसकी जगह ले ली गलतफ़हमी ने
गलतफ़हमी जिसने रिश्तों को झँझोड़ दिया

रिश्ते ने आखिर दम तोड़ दिया

दम जो टूट कर सब खत्म हुआ
खत्म जो डर था वो कायम हुआ
कायम जो ख़ौफ मेरे रूह में रहा
रूह जिसने आख़िर जीना छोड़ दिया
रिश्ते ने आख़िर दम तोड़ दिया