कृत्रिम बाढ़ : एक गंभीर समस्या
गोपाल जालान
गुवाहाटी के लोग पिछले कई दिनों से कृत्रिम बाढ़ में फंसे हुए हैं। देश के सभी महानगर बरसात के जलजमाव अथवा कृत्रिम बाढ़ से प्रभावित हैऔर ऐसे महानगरों की सूची में गुवाहाटी भी शामिल है। बरसात के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली कृत्रिम बाढ़ से न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि आमलोगों की दिनचर्या पूरी तरह से तहस-नहस होकर रह जाती है। पिछले दिनों भी कुछ ऐसे ही नजारे देखने को मिले। कृत्रिम बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आकर पांच लोगों की मौत हो गई। पहाड़ी मिट्टी के ढहने से लोगों के घर क्षतिग्रस्त हो गए और सड़कों पर ठहरे बरसात के पानी में डूब जाने से न जाने कितने ही वाहन खराब हो गए। गुवाहाटी में हर साल बरसात के दिनों कृत्रिम बाढ़ आती है। सरकार लोगों के लिए बचाव कार्य चलाकर और उनको राहत सामग्री आदि प्रदान कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है और आम जनता भी इस समस्या के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराकर नागारिक होने का अधिकार निभा देती है।
पिछले चार दशकों में विकास, जनसंख्या और निर्माण के नाम पर बढ़ते दबाव के कारण महानगर में कृत्रिम बाढ़ की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। महानगर के बीच से होकर बहने वाली भरलु, वाहिनी,बोंदाजान, पामोही आदि नदियों को हमने कचरा डाल-डालकर नाले में तब्दील कर दिया। स्थिति यह हो गई है कि इन नदियों को पुनर्जिवित करने के लिए कई समाजसेवी संगठन दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। महानगर के बीच बने बड़े-बड़े जलाशयों का अतिक्रमण कर लिया, पहाड़ों को काट-काटकर समतल भूमि में तब्दील किया गया। विकासमूलक निर्माण के नाम पर पेड़ों की भी बेतहाशा कटाई की गई। चारों ओर पहाड़ियों से घिरे, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कटोरेनुमा गुवाहाटी की हमने ऐसी दशा कर दीकि अब हर साल कृत्रिम बाढ़, जलजमाव जैसी समस्याएं खड़ी होने लगी।
अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। बिगड़ी स्थिति को सुधारा जा सकता है। हमें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि इस कृत्रिम बाढ़ की समस्या के लिए कहीं हम भी तो जिम्मेदार नहीं है। प्रतिदिन हमारे द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला प्लास्टिक अथवा एक अतिरिक्त कमरा बनाने के लोभ में घर के सामने खड़े वर्षों पुराने पेड़ को काट देने के कारण कहीं पर्यावरण तो प्रभावित नहीं हो रहा है। हमारे घर में काम करने वाली कामवाली दीदी घर का कचरा कहीं पास बहने वाले मुख्य नाले में तो नहीं फेंक रही है। इन सब बिंदूओं पर गंभीरता के साथ ध्यान देने का समय अब आ गया है। स्थिति का मुकाबला करने के लिए हमें पूरी संजीदगी के साथ आगे आना होगा। यह बात समझने की जरूरत है कि सिर्फ विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर ही वृक्षारोपण क्यों होना चाहिए। क्या हम अन्य मांगलिक मौके पर भी वृक्षारोपण नहीं कर सकते। वृक्षारोपण सहित पर्यावरण के काम में लगे गैर सरकारी समाजसेवी संगठनों को प्रोत्साहित करके भी हम एक जागरुक नागरिक होने की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। कृत्रिम बाढ़ की समस्या के लिए हम सरकार को भी जिम्मदार ठहरा सकते हैं। हम कह सकते हैं कि इतने साल गुजर जाने के बाद भी सरकार ने गुवाहाटी की कृत्रिम बाढ़ जैसी समस्या का समाधान नहीं किया। लेकिन समस्या के समाधान की बात करने से पूर्व हमें स्वयं से यह सवाल करना होगा कि इस समस्या का जन्मदाता कौन है? किसी नाले में जमा गंदगी-कचरे को साफ करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, मगर कचरा नाले में नहीं उसके पास रखे डस्टबिन में गिरने का दाईत्व भी हम सभी को लेना होगा। सरकार कोई ईश्वर की बनाई रचना नहीं है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से ही सरकार बनती है। लिहाजा कृत्रिम बाढ़ जैसी समस्याओं के लिए किसी अन्य को जिम्मेदार ठहराने से पूर्व हम नागरिकों को भी अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।