हिंदी दिवस का महत्व – निकुंज शर्मा

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हिंदी दिवस का महत्व

हिंदी एक ऐसा भाषा है जिसका सुर अति सुहावना है । यह सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि एक माध्यम है जिसके द्वारा लोग एक-दूसरे से काफी अच्छी तरह जुड़ सकते हैं और देश की तरक्की को एक नई ऊंचाईयों तक ले जा सकते हैं । इस भाषा को सरकारी भाषा का दर्जा दिया गया है । इसे हिंदुस्तानी भाषा भी कहा जाता है । इसलिए हमारे देश के लोगों को इस भाषा को अच्छे से बोलना और लिखना दोनों आना चाहिए । लोगों का ऐसा मानना है कि हिंदी जाने बिना भी बहुत सारा काम हो सकता है, लेकिन मुख्य भाषा के रूप में प्रयोग नहीं कर सकते हैं । अंग्रेजी भारत में अंग्रेजों के द्वारा लाई गई और अंग्रेजी कभी भी भारत के लोगों को अच्छी तरह समझ में नहीं आती है ।

पूरे विश्व में सबसे जादा बोली जाने वाली भाषाओं में से हिंदी चौथी भाषा है।  लगभग विश्व के 50% लोग हिंदी बोलते हैं । आज़ादी मिलने के बाद, देश मे अंग्रेजी के बढ़ते उपयोग और हिंदी के बहिष्कार को देखते हुए हिंदी दिवस मनाने का निर्णय लिया।  गांधी जी ने 1918 में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने कि बात कही थी। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। पर आगे चल कर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद, हिन्दी को राजभाषा के रूप में संविधान में जोड़ा गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा। यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इसी दिन हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50वाँ जन्मदिन था, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। सन 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

14 सितंबर को 1949 को हिंदी को राजभाषा बनाया गया परंतु गैर हिंदी राज्यों ने इसका बहुत विरोध किया, जिसके कारणवश अंग्रेजी को यह स्थान मिल गया और तब से लेकर आज तक हिंदी के सर्वत्र विकास के लिये हिंदी दिवस मनाया जाता है और हर कार्यालय में हिंदी विभाग बनाया गया। ताकि हिंदी को जन-जन तक पहुंचाया जाए और हिंदी को भारत में राष्ट्रभाषा का सम्मान मिल पाया है ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किये।

 हिंदी दिवस के दिन छात्र-छात्राओं को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही साथ हिंदी सप्ताह का भी आयोजन किया जाने लगा। जिसके तहत निबंध प्रतियोगिता, भाषण, काव्य गोष्ठी, वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताएं कराई जाने लगीं, ताकि लोगों में इस भाषा के प्रति रुचि जागे और वे इन प्रतियोगिताओं में भाग लें और वे इस भाषा के ज्ञान को बढ़ाएं। साथ ही साथ सभी सरकारी कार्यालयों मे हिंदी विभाग का गठन किया गया जिसका कार्य कार्यालय में सबको हिंदी सिखाना और हिंदी भाषा के महत्व को बढ़ाना है। हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति लोगों को प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान की शुरुआत की गई है। यह सम्मान प्रतिवर्ष देश के ऐसे व्यक्तित्व को दिया जाएगा जिसने जन-जन में हिन्दी भाषा के प्रयोग एवं उत्थान के लिए विशेष योगदान दिया है। इसके लिए सम्मान स्वरूप एक लाख एक हजार रुपये दिये जाते हैं।

भारत में सदियों पहले हो सका था हिंदी का विकास और यह भाषा भारत के जन मन में काफी पैठ बना चुका है । भारत के लोग बचपन से ही इसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं । हिंदी इतनी सरल भाषा है कि इसका इस्तेमाल करना बहुत आसान है । इस भाषा को सिखने के लिए ज्यादा किताब पढ़ने की जरूरत नहीं है । भारत में हिंदी के बिना बहुत सारा काम नहीं हो सकता है क्योंकि यहां 70 से 80 प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं । यह एक ऐसी भाषा है जिसका इस्तेमाल गरीब, छोटे-बड़े आसानी से कह सकते हैं ।

भारत के ज्यादातर लोग की मातृभाषा हिंदी होने की वजह से उन्हें बोलने और समझने में कष्ट नहीं होता है । बिना स्कूल गए हुए लोग भी आसानी से हिंदी बोल लेते हैं । हिंदी में शब्दों की भरमार है । इस भाषा में भावनाओं को अच्छे से व्यक्त किया जा सकता है ।

 भारत का‌ 2011 संसस के हिसाब से असम का सर्वमुठ जनसंख्या 31,205,576 (जिसमें से हिंदी बोलने वाले लोग हैं—  21,01,435) ।

हिन्दी को आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका है। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि योग को 177 देशों का समर्थन मिला, लेकिन हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन क्या नहीं जुटाया जा सकता ? यहाँ तक कि वाराणसी में स्थित दुनिया में सबसे बड़ी हिन्दी संस्था आज बहुत ही खस्ता हाल में है।

वर्तमान समय में हमारे राज्य असम में सिर्फ हिंदी बोली वाले लोग ही हिंदी नहीं बोलते है बल्कि लगभग सभी संप्रदायों के लोग एक-दूसरे से बात चीत के लिए करते हैं। असम के हर एक स्कूल, कालेजों में हिंदी विषय है । यहां पर हर एक स्कूलों में हिंदी सिखाया जाता है। अभी धीरे-धीरे हम इसे अपनाने लगे हैं जो हमारे लोगों के लिए अच्छा सावित हुआ है । अगर हम मौजूदा हालात को देखे तो हमें यह मालूम चलेगा कि हिंदी को अच्छे से जानना बेहद जरूरी है। इससे देश की प्रगति जुड़ा हुआ है ।

कई हिन्दी लेखकों और हिन्दी भाषा जानने वालों का कहना है कि हिन्दी दिवस केवल सरकारी कार्य की तरह है, जिसे केवल एक दिन के लिए मना दिया जाता है। इससे हिन्दी भाषा का कोई भी विकास नहीं होता है, बल्कि इससे हिन्दी भाषा को हानि होती है। कई लोग हिन्दी दिवस समारोह में भी अंग्रेजी भाषा में लिख कर लोगों का स्वागत करते हैं। सरकार इसे केवल यह दिखाने के लिए चलाती है कि वह हिन्दी भाषा के विकास हेतु कार्य कर रही है। स्वयं सरकारी कर्मचारी भी हिन्दी के स्थान पर अंग्रेज़ी में कार्य करते नज़र आते हैं। लेकिन कुछ लोगों की सोच यह भी है कि विविध कारण बताकर हिन्दी दिवस मनाने का विरोध करने और मजाक उड़ाने वाले यह चाहते हैं कि हिन्दी के प्रति रही-सही अपनत्व की भावना भी समाप्त की जाय।

निकुंज शर्मा

एम. कोम. प्रथम छमाही

के.ची.दास कमार्च कालेज